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कविता

बारात

संजय कुंदन


गुजर रही बरात
सड़क की छाती पर मूँग दलती हुई

बीच में दूल्हा राजा है
अगल-बगल बैंड बाजा है
चमक ही चमक है
गमक ही गमक है
बारातियों की ठुमक-ठुमक है

लाखों की अँगूठी लाखों के हार
अजब शेरवानी गजब सलवार
कार ही कार कार ही कार

इतने व्यंजन इतने व्यंजन
प्लेट टनन टनन
बोतल खनन खनन
फिर वमन वमन
इतने जूठन इतने जूठन
कुत्ते-कौए मगन मगन

देख बारात जुड़ जाए रे जिया
मेरा देश फिर बन गया
सोने की चिड़िया।

 


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