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कविता

इसी जनम में

संजय कुंदन


वह जो मन की चहचहाहट पर गुनगुनाता था
मन की लहरों में डूबता-उतराता था
पकता रहता था मन की आँच में
वह जो चला गया एक दिन
मन के घोड़े की रास थामे
साँवले बादलों में न जाने कहाँ
वह मैं ही था

विश्वास नहीं होता
यह इसी जनम की बात है।

 


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