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कविता

उनये उनये भादरे

नामवर सिंह


उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झुरती पुरवैया की याद रे
मन कुएँ के कोहरे-सा रवि डूबे के बाद इरे।

भादरे।

उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में

घास में।

 


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