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कविता

सॉनेट – 1

नामवर सिंह


बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमाना
लेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवा
नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना
ऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा

गंध हो गई मानव की मानव को दुस्सह
शिकवा मुझ को है जरूर लेकिन वह तुमसे -
तुमसे जो मनुष्य होकर भी गुम-सुम से
पड़े कोसते हो बस अपने युग को रह-रह

कोसेगा तुमको अतीत, कोसेगा भावी
वर्तमान के मेधा! बड़े भाग से तुमको
मानव-जय का अंतिम युद्ध मिला है, चमको
ओ सहस्र जन-पद-निर्मित चिर-पथ के दावी!

तोड़ अद्रि का वक्ष क्षुद्र तृण ने ललकारा
बद्ध गर्भ के अर्भक ने है तुम्हें पुकारा।

 


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