hindisamay head


अ+ अ-

कविता

अधूरा

आर अनुराधा


सुनती हूँ बहुत कुछ
जो लोग कहते हैं
असंबोधित
कि
अधूरी हूँ मैं - एक बार
अधूरी हूँ मैं - दूसरी बार
क्या दो अधूरे मिलकर
एक पूरा नहीं होते?
होते ही हैं
चाहे रोटी हो या
मेरा समतल सीना
और अधूरा आखिर
होता क्या है!
जैसे अधूरा चाँद? आसमान? पेड़? धरती?
कैसे हो सकता है
कोई इंसान अधूरा!

जैसे कि
केकड़ों की थैलियों से भरा
मेरा बायाँ स्तन
और कोई सात बरस बाद
दाहिना भी
अगर हट जाए,
कट जाए
मेरे शरीर का कोई हिस्सा
किसी दुर्घटना में
व्याधि में / उससे निजात पाने में
एक हिस्सा गया तो जाए
बाकी तो बचा रहा!
बाकी शरीर / मन चलता तो है
अपनी पुरानी रफ्तार!
अधूरी हैं वो कोठरियाँ
शरीर / स्तन के भीतर
जहाँ पल रहे हों वो केकड़े
अपनी ही थाली में छेद करते हुए

कोई इंसान हो सकता है भला अधूरा?
जब तक कोई जिंदा है, पूरा है
जान कभी आधी हो सकती है भला!
अधूरा कौन है -
वह, जिसके कंधे ऊँचे हैं
या जिसकी लंबाई नीची
जिसे भरी दोपहरी में अपना ऊनी टोप चाहिए
या जिसे सोने के लिए अपना तकिया
वह, जिसका पेट आगे
या वह, जिसकी पीठ
जो सूरज को बर्दाश्त नहीं कर सकता
या जिसे अँधेरे में परेशानी है
जिसे सुनने की परेशानी है
या जिसे देखने-बोलने की
जो हाजमे से परेशान है या जो भूख से?
आखिर कौन?
मेरी परिभाषा में -
जो टूटने-कटने पर बनाया नहीं जा सकता
जिसे जिलाया नहीं जा सकता
वह अधूरा नहीं हो सकता
अधूरा वह
जो बन रहा है
बन कर पूरा नहीं हुआ जो
जिसे पूरा होना है
देर-सबेर
कुछ और नहीं।
न इंसान
न कुत्ता
न गाय-बैल
न चींटी
न अमलतास
न धरती
न आसमान
न चाँद
न विचार
न कल्पना
न सपने
न कोशिश
न जिजीविषा
कुछ भी नहीं
पूँछ कटा कुत्ता
बिना सींग के गाय-बैल
पाँच टाँगों वाली चींटी
छँटा हुआ अमलतास
बंजर धरती
क्षितिज पर रुका आसमान
ग्रहण में ढका चाँद
कोई अधूरा नहीं अगर
तो फिर कैसे
किसी स्त्री के स्तन का न होना
अधूरापन है
सूनापन है?

 


End Text   End Text    End Text