hindisamay head


अ+ अ-

अन्य

यायावर, घुमक्कड़ और सैलानी

अजित वडनेरकर


हिन्दी का यायावर बड़ा खूबसूरत शब्द है। घुमक्कड़ के लिए सबसे प्रिय पर्यायवाची शब्द यही लगता रहा है मुझे। एक अन्य वैकल्पिक शब्द खानाबदोश है। मगर भाव के स्तर पर अकसर मैंने महसूस किया है कि खानाबदोश में जहाँ दर-दर की भटकन का बोध होता है वहीं यायावर अथवा घुमक्कड़ में भटकने के साथ मनमौजी वाला भाव भी शामिल है।

यायावर की व्युत्पत्ति पर गौर करें तो भी यही बात सही साबित होती है। इस शब्द का संस्कृत में जो अर्थ है वह है परिव्राजक, साधु-संत, संन्यासी आदि। साधु-संतों के व्यक्तित्व में नदियों के- से गुणों की बात इसीलिए कही जाती है क्योंकि उनमें जो सदैव बहने की, गमन करने की वृत्ति होती है वही साधु में भी होनी चाहिए। इसी भ्रमणवृत्ति के परिणामस्वरूप वे अनुवभवजनित ज्ञान से समृद्ध होते हैं और तीर्थस्वरूप कहलाते हैं। अब मनमौजी हुए बिना भला भ्रमणवृत्ति भी आती है कहीं? गौर करें कि नदी तट के पवित्र स्थानों को ही तीर्थ कहा जाता है।

यायावर बना है संस्कृत की या धातु से। इसमें जाना, प्रयाण करना, कूच करना, ओझल हो जाना, गुजर जाना (यानी चले जाना - मृत्यु के अर्थ वाला गुजर जाना मुहावरा नहीं) आदि भाव शामिल हैं। अब इन तमाम भावार्थों पर जब गौर करेंगे तो आज ट्रांसपोर्ट के अर्थ में खूब प्रचलित यातायात शब्द की व्युत्पत्ति सहज में ही समझ में आ जाती है। या धातु से ही बना है यात्रा शब्द जिसका मतलब है गति, सेना का प्रयाण, आक्रमण, सफर, जुलूस, तीर्थाटन-देशाटन आदि। इससे ही बना संस्कृत में यात्रिकः जिससे हिंदी में यात्री शब्द बना। घुमक्कड़ वृत्ति के चलते ही साधु से उसकी जात और ठिकाना न पूछे जाने की सलाह कहावतों में मिलती है। खास बात यह भी है कि यातायात और यायावर चाहे एक ही मूल से जन्मे हों मगर इनमें वैर भाव भी है। साधु-संन्यासियों (यायावर) के जुलूस, अखाड़े और संगत जब भी रास्तों पर होते हैं तो यातायात का ठप होना तय समझिए।

हिन्दी-उर्दू में यायावर के अर्थ में सैलानी शब्द भी प्रचलित है और भाषा में लालित्य लाने के लिए अक्सर इसका भी प्रयोग होता जाता है। सैलानी वह जो सैर-सपाटा करे। सैलानी अरबी मूल का शब्द है और बरास्ता फारसी, हिन्दी-उर्दू में दाखिल हुआ। इस शब्द की व्युत्पत्ति देखें तो वहाँ भी बहाव, पानी, गति ही नजर आएँगे। अरबी में एक लफ्ज है सैल, जिसके मायने हुए पानी का बहाव, बाढ़ या जल-प्लावन। गौर करें कि किसी किस्म के प्रवाह के लिए, वह चाहे भावनाओं का हो या लोगों का, हिन्दी-उर्दू में सैलाब शब्द का इस्तेमाल खूब होता है। अलबत्ता सैलाब का मूल अर्थ तो बाढ़ ही है, मगर प्रवाह वाला भाव प्रमुख होने से इसके अन्य प्रयोग भी होने लगे हैं जैसे आँसुओं का सैलाब। सैल से ही बन गया सैलानी अर्थात जो गतिशील रहे। सैर-सपाटा पसंद करनेवाला। इसी कड़ी में आता है सैर, जिसका मतलब है तफरीह, पर्यटन, घूमना-फिरना आदि। इससे बने सैरगाह, सैरतफरीह जैसे लफ्ज हिन्दी में चलते हैं।

अब बात घुमक्कड़ की। यायावर के लिए घुमक्कड़ एकदम सही पर्याय है। घुमक्कड़ वो जो घूमता -फिरता रहे। यह बना है संस्कृत की मूल धातु घूर्ण् से जिसका अर्थ चक्कर लगाना, घूमना, फिरना, मुड़ना आदि है। घूमना, घुमाव, घुण्डी आदि शब्द इसी मूल से उपजे हैं। हिन्दी-उर्दू के घुमक्कड़ और गर्दिश जैसे शब्द इसी से निकले हैं। उर्दू-फारसी का बड़ा आम शब्द है आवारागर्द। इसमें जो गर्द है वह उर्दू का काफी प्रचलित प्रत्यय है। आवारा से मिलकर मतलब निकला व्यर्थ घूमनेवाला। इसका अर्थविस्तार बदचलन तक पहुँचता है। जबकि घूर्णः से ही बने घुमक्कड़ के मायने होते हैं सैलानी, पर्यटक या घर से बाहर फिरने वाला। यूँ उर्दू-हिन्दी में गर्द का मतलब है धूल, खाक। यह गर्द भी घूर्ण् से ही संबंधित है अर्थात घूमना-फिरना। धूल या या खाक भी एक जगह स्थिर नहीं रहती। इस गर्द की मौजूदगी भी कई जगह नजर आती है। जैसे गर्दिश, जिसका आम तौर पर अर्थ होता है संघर्ष । मगर भावार्थ यहाँ भी भटकाव या मारा-मारा फिरना ही है। गर्दिश से गर्दिशजदा, गर्दिशे-दौराँ, गर्दिशे-रोजगार आदि लफ्ज भी बने हैं।


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में अजित वडनेरकर की रचनाएँ