दोस्त चार हजार नौ सौ सतासी थे पर अकेलापन भी कम न था वहीं खड़ा था साथ में दोस्त दूर थे शायद बहुत दूर थे ऐसा कि रोने-हँसने पर अकेलापन ही पूछता था क्या हुआ दोस्त दूर से हलो, हाय करते थे बस स्माइली भेजते थे...
हिंदी समय में हरे प्रकाश उपाध्याय की रचनाएँ