जरा सी बात थी कि बात कोई थी ही नहीं बेबात की वह बात थी जो बिना बात को बतंगड़ बना गयी जिसकी अंधड़ में लुट-पिट गये हैं हम!
हिंदी समय में हरे प्रकाश उपाध्याय की रचनाएँ