एक लड़की सुनती है, देखती है कि गर्भ में मार दी जा रही हैं लड़कियाँ वह सोचती है वह भी गर्भ में ही मार दी गयी होतीं तो... यह मर्दानी दुनिया ये दबाव दुख... वह सोचकर हँसती है न रोती है चादर तानकर चुप सो लेती है...!
हिंदी समय में हरे प्रकाश उपाध्याय की रचनाएँ