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कविता

लोहे की रेलिंग

नरेश सक्सेना


थोड़ी-सी ऑक्सीजन और थोड़ी-सी नमी
वह छीन लेटी है हवा से
और पेंट की परत के नीचे छिप कर
एक खुफिया कार्रवाई की शुरुआत करती है

एक दिन अचानक
एक पपड़ी छिलके-सी उतरती है
और चुटकी भर भुरभुरा लाल चूरा
चुपके से धरती की तरफ
लगाता है छलाँग
(गुरुत्वाकर्षण इस में उसकी मदद करता है)

यह शिल्प और तकनीक के जबड़ों से
छूटकर आजाद होने की
जी तोड़ कोशिश
यह घर लौटने की एक मासूम इच्छा

आखिर थोड़ी-सी ऑक्सीजन और
थोड़ी-सी नमी
तो हमें भी जरूरी है जिंदा रहने के लिए
बस थोड़ी-सी ऑक्सीजन
और थोड़ी-सी नमी
वह भी छीन लेती है हवा से।

 


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