जिन्होंने खुद नहीं की अपनी यात्राएँ दूसरों की यात्रा के साधन ही बने रहे एक जूते का जीवन जिया जिन्होंने यात्रा के बाद उन्हें छोड़ दिया गया घर के बाहर।
हिंदी समय में नरेश सक्सेना की रचनाएँ