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कविता

आघात

नरेश सक्सेना


आघात से काँपती हैं चीजें
अनाघात से उससे ज्यादा
आघात की आशंका से
काँपते हुए पाया खुद को।

 


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हिंदी समय में नरेश सक्सेना की रचनाएँ