hindisamay head


अ+ अ-

कविता

समुद्र पर हो रही है बारिश

नरेश सक्सेना


क्या करे समुद्र
क्या करे इतने सारे नमक का

कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं
क्या पता
कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं
इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं
फिर भी संसार की सारी नदियाँ
धरती का सारा नमक लिए
उसी की तरफ दौड़ी चली आ रही हैं
तो क्या करे
कैसे पुकारे
मीठे पानी में रहने वाली मछलियों को
प्यासों को क्या मुँह दिखाए
कहाँ जाकर डूब मरे
खुद अपने आप पर बरस रहा है समुद्र
समुद्र पर हो रही है बारिश

नमक किसे नहीं चाहिए
लेकिन सबकी जरूरत का नमक वह
अकेला ही क्यों ढोए

क्या गुरुत्त्वाकर्षण के विरुद्ध
उसके उछाल की सजा है यह
या धरती से तीन गुना होने की प्रतिक्रिया

कोई नहीं जानता
उसकी प्राचीन स्मृतियों में नमक है या नहीं

नमक नहीं है उसके स्वप्न में
मुझे पता है
मैं बचपन से उसकी एक चम्मच चीनी
की इच्छा के बारे में सोचता हूँ

पछाड़ें खा रहा है
मेरे तीन चौथाई शरीर में समुद्र

अभी-अभी बादल
अभी-अभी बर्फ
अभी-अभी बर्फ
अभी-अभी बादल।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में नरेश सक्सेना की रचनाएँ