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					सेनाएँ जब सेतु से गुजरती हैंतो सैनिक अपने कदमों की लय तोड़ देते हैं
 क्योंकि इससे सेतु टूट जाने का खतरा
 उठ खड़ा होता है
 
 शनैः-शनै: लय के सम्मोहन में डूब
 सेतु का अंतर्मन होता है आंदोलित
 झूमता है सेतु दो स्तंभों के मध्य और
 यदि उसकी मुक्त दोलन गति मेल खा गई
 सैनिकों की लय से
 तब तो जैसे सुध-बुध खो केंद्र से
 उसके विचलन की सीमाएँ टूटना हो जाती हैं शुरू
 लय से उन्मत्त
 सेतु की काया करती है नृत्य
 लेफ्ट-राइट, लेफ्ट-राइट, ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे
 अचानक सतह पर उभरती है हल्की-सी रेख
 और वह भी शुरू करती है मार्च
 लगातार होती हुई गहरी और केंद्रोन्मुख
 
 रेत नहीं रेत लोहा, लोहा अब नहीं
 और चूना और मिट्टी हो रहे मुक्त
 शिल्प और तकनीकी के बंधन से
 पंचतत्त्व लौट रहे घर अपने
 धम्म...धम्म...धम्म...धम्म...धम्म...धड़ाम
 
 लय की इस ताकत को मेरे शत-शत प्रणाम
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