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एक ही गिलास से हम नहीं पिएँगे
न पानी, न मीठी शराब
चुंबन नहीं लेंगे सुबह-सुबह
साँझ में झाँका नहीं करेंगे खिड़की से।
तुममें सूर्य प्राण भरता है और मुझमें - चंद्रमा,
मात्र प्रेम के बल जिंदा हैं हम दोनों।
मेरे संग हमेशा रहता है मेरा नाजुक वफादार दोस्त,
तुम्हारे साथ रहती है तुम्हारी खुशमिजाज मित्र
पर मैं अच्छी तरह समझती हूँ उसकी आँखों का भय
तुम्हीं हो दोषी मेरा रुग्णता के।
बढ़ा नहीं पा रहे हम छोटी-छोटी मुलाकातों का सिलसिला
विवश हैं अपना अपना अमन-चैन बचाए रखने के लिए।
मेरी कविताओं में सिर्फ तुम्हारी आवाज गाती है,
और तुम्हारी कविताओं में होते हैं मेरे प्राण।
ओ, ऐसा है एक अलाव जिसे छूने का साहस
कर नहीं पाता कोई भय या विस्मरण...
काश, मालूम होता तुम्हें इस क्षण
कितने प्रिय हैं मुझे तुम्हारे सूखे, गुलाबी होंठ !
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