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कविता

कुछ नहीं चाहिए

वेलिमीर ख्लेब्निकोव

अनुवाद - वरयाम सिंह


कुछ नहीं चाहिए !
बस, टुकड़ा-भर रोटी
बूँद-भर दूध
यह आकाश
और ये बादल !

 


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