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कविता

जाम पियें

उद्भ्रांत


एक-एक जाम पियें
कोलाहल का, आओ!

स्वाद बहुत तीखा है
किंतु इसे पीकर हम
मस्ती में डूब जायँगे
बैठी है जो मन की हलचल सागर-तीरे
वह भीतर खींच लायँगे

एक-एक जाम पियें
इस हलचल का, आओ!

 


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