एक-एक जाम पियें कोलाहल का, आओ! स्वाद बहुत तीखा है किंतु इसे पीकर हम मस्ती में डूब जायँगे बैठी है जो मन की हलचल सागर-तीरे वह भीतर खींच लायँगे एक-एक जाम पियें इस हलचल का, आओ!
हिंदी समय में उद्भ्रांत की रचनाएँ