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कविता

लक्ष्मण-रेखाएँ

उमेश चौहान


जो हमेशा अपनी हद में रहता है
वह प्रायः सुरक्षित बना रहता है
लेकिन इतिहास का पन्ना नहीं बन पाता कभी भी
जो हदें पार करने को तत्पर रहता है
उसी के लिए खींची जाती हैं लक्ष्मण-रेखाएँ
जो वर्जना को दरकिनार कर लाँघता है ये रेखाएँ
वही पाता है जगह प्रायः इतिहास के पन्नों पर।

इस देश में ऐसे महापुरुषों की कमी नहीं
जो नारियों को मानकर अबला
रोज खींचते हैं उनके चारों ओर लक्ष्मण-रेखाएँ
लेकिन फिर भी कुछ सीताएँ हैं कि मानती ही नहीं
युगों पुरानी त्रासदी को भूल
किसी भी वेश में आए रावण की परवाह किए बिना
वे लाँघती ही रहती हैं निर्भयता से
पुरुष-खचित इन रेखाओं को
और इतिहास के पन्नों में दर्ज होती रहती हैं
मीराँबाई, अहिल्याबाई, लक्ष्मीबाई
या फिर यूसुफजाई मलाला और दामिनी बनकर।

 


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