hindisamay head


अ+ अ-

कविता

हमारे दिल सुलगते हैं

शमशेर बहादुर सिंह


(अल्‍जीरियाई वीरों को समर्पित)


लगी हो आग जंगल में कहीं जैसे,
हमारे दिल सुलगते हैं।

हमारी शाम की बातें
लिये होती हैं अक्‍सर जलजले महशर के; और जब
भूख लगती है हमें तब इन्कलाब आता है।

हम नंगे बदन रहते हैं झुलसे घोंसलों में,
बादलों-सा
शोर तूफानों का उठता है -
डिवीजन के डिवीजन मार्च करते हैं,
नये बमबार हमको ढूँढ़ते फिरते हैं...

सरकारें पलटती हैं जहाँ हम दर्द से करवट बदलते हैं !

हमारे अपने नेता भूल जाते हैं हमें जब,
भूज जाता है जमाना भी उन्‍हें, हम भूल जाते हैं उन्‍हें खुद।

और तब
इन्कलाब आता है उनके दौर को गुम करने।

 


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ



अनुवाद