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[जो एक शादी के मौके के लिए कहे गये]
गुलशन से जो इतराती आँगन में बहार आयी,
खु़शजौक दुल्हन उसकी शोखी को सँवार आयी।
यह कौन निगार आया, फिर बाँगे-हजार आयी
कलियों पे निखार आया, फलों पे बहार आयी।
फिर शोरे-अनादिल है, फिर गुंचे परीशाँ हैं :
ए बादे-सबा, लेकर क्या नामए-यार आयी?
हर एक शगूफा यह कहता हुआ खिलता है
"शायद कि बहार आयी ! शायद कि बहार आयी !"
(1945)
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