तकिये पे सुर्ख गुलाब मैंने समझे... दो सेब मैंने समझे दो... क्यों ? वो तो... वो तो दो दिल थे।
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संग - शाम का रंग लपेटे तुम थे
- तकिये पे सिर्फ मेरा सिर था : आँखों में रात जल रही थी।
(1951)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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