धरो शिर हृदय पर वक्ष - वह्नि से, -- तुम्हें मैं सुहाग दूँ - चिर सुहाग दूँ! प्रेम - अग्नि से - तुम्हें मैं सुहाग दूँ। विकल मुकुल तुम प्राणमयि, यौवनमयि, चिरवसंत - स्वप्नमयि, मैं सुहाग दूँ : विरह - आग से, - तुम्हें मैं सुहाग दूँ !
(1941)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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