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- सुंदर !
उठाओ
निज वक्ष
और - कस - उभर !
क्यारी
भरी गेंदा की
स्वर्णारक्त
क्यारी भरी गेंदा की :
तन पर
खिली सारी -
अति सुंदर ! उठाओ...।
स्वप्न-जड़ित-मुद्रामयि
शिथिल करुण!
हरो मोह-ताप, समुद
स्मर-उर वर :
हरो मोह-ताप -
और और कस उभर !
सुंदर ! उठाओ...!
अंकित कर विकाल हृदय-पंकज के अंकुर पर
चरण-चिह्न,
अंकित कर अंतर आरक्त स्नेह से नव, कर पुष्ट, बढ़ूँ
सत्वर, चिरयौवन वर, सुदंर ! -
उठाओ निज वक्ष : और और कस, उभर !
(1941)
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