जब उस कवि के रुँधे स्वरों से जिज्ञासा-उर खुले, खुँदे - रक्तिम तम के गहन देश में भव के पलक मुँदे।
(1940)
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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