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कविता

अनंत के लिए क्षणिक बारिश

बोरीस पास्तरनाक


और फिर ग्रीष्‍म ने विदा ली
छोटे-से रेलवे स्‍टेशन से।
टोपी उतार कर बादलों की गड़गड़ाहट ले
याददाश्‍त के लिए
सैकड़ों तस्‍वीरें लीं रात की।

रात के अंधकार मे
बिजली की कौंध दिखाने लगी
ठंड से जमे बकायन के गुच्‍छे
और खेतों से परे मुखिया की कोठी।

और जब कोठी की छत पर
बनने लगी परपीड़क खुशी की लहर
जैसे तस्‍वीर पर कोयले का चूरा
बारिश का पानी गिरा बेंत की बाड़ पर।

झिलमिलाने लगा चेतना का भहराव
लगा बस अभी
चमक उठेंगे विवेक के वे कोने
जो रोशन हैं अब दिन की तरह।

 


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