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आने वाले युगों की गरजती गरिमा की खातिर
उन्नत मानव समाज की खातिर
पितरों के भोज में वंचित रहा मैं अपने प्याले से,
वंचित रहा आनंद और सम्मानित होने के अवसर से।
आ झपटता है मेरी पीठ पर मेरा युग-भेड़िया पकड़ता हुआ कुत्ता,
पर अपने खून से तो मैं हूँ नहीं कोई भेड़िया,
टोपी की तरह छिपाओ मुझे
साइबेरियाई स्तैपी के गर्म फरकोट की आस्तीन में।
कि मुझे देखने की न मिलें काई, कीचड़ और गंदगी
न ही पहियों पर लगी खूनसनी हड्डियाँ
कि मेरे सामने रात भर चमकती रहें
ध्रुवप्रदेश की नीली लोमड़ियाँ अपने आदिम सौंदर्य में।
मुझे ले चलो रात्रिप्रदेश में जहाँ बहती है एनिसेई नदी
जहाँ तारों तक पहुँचती है देवदारूओं की चोटियाँ,
कि अपने खून से मैं हूँ नहीं कोई भेड़िया
कोई मार सका यदि मुझे वह होगा मेरी ही बराबरी का।
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