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कविता

खामोशी

ओसिप मांदेल्श्ताम


उसका अभी जन्‍म हुआ नहीं
वह संगीत है, शब्‍द भी
इसी लिए अटूट सूत्र है वह
उस सबका जो कि जीवित है।

चैन से साँस ले रहा है समुद्र का सीना
पर पागल की तरह उज्‍ज्‍वल है दिन,
बुझे-बुझे-से हैं लाइलैक झाग के
इस साँवले नीले पात्र में।

प्राप्‍त होगा मेरे होठों को
वह पुरातन आदि मौन
स्‍फटिक के स्‍वरों की तरह जो
निष्‍कलुष रहा जन्‍म से !

ओ झाग, ओ अफ्रोडाइटी,
ओ शब्‍द, लौट आओ संगीत में,
ओ हृदय, शर्म कर उस हृदय से
जो एक हो गया है जीवन के मूल आधार से!

 


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