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(एक)
मैं घर लौट आयी हूँ
मै छद्मवेशी नहीं हूँ।
रोटी नहीं चाहिए मुझे
मैं नौकरानी नहीं हूँ।
मैं हूँ तुम्हारी वासना का आवेग
आराम हूँ तुम्हारा रविवार का।
दिन हूँ तुम्हारा सातवाँ
और हूँ तुम्हारा सातवाँ आकाश।
एक पैसा क्या मिला भीख में
चक्की के बाँध दिये पाट मेरे गले में।
ओ प्रिय, पहचान नहीं पा रहे हो क्या
मैं अबाबील हूँ - तुम्हारी आत्मा।
(दो)
कभी जो रहा कोमल शरीर
आज ढका है चीथड़ों से,
टुकड़े-टुकड़े हो गया है सब कुछ
साबुत बचे हैं सिर्फ दो पंख।
बचाओ, तरस खाओ मुझ पर -
पहनाओ मुझे अपनी गरिमा
और ले जाओ मेरे फटे चीथड़े
अपने परिधानो के पवित्र भंडार में।
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