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कविता

जंगली गुलाब

कुँवर नारायण


नहीं चाहिए मुझे
कीमती फूलदानों का जीवन

मुझे अपनी तरह
खिलने और मुरझाने दो
मुझे मेरे जंगल और वीराने दो

मत अलग करो मुझे
मेरे दरख्त से
वह मेरा घर है
उसे मुझे अपनी तरह सजाने दो,
उसके नीचे मुझे
पंखुरियों की शैय्या बिछाने दो

नहीं चाहिए मुझे किसी की दया
न किसी की निर्दयता
मुझे काट छाँट कर
सभ्य मत बनाओ

मुझे समझने की कोशिश मत करो
केवल सुरभि और रंगों से बना
मैं एक बहुत नाजुक ख्वाब हूँ
काँटों में पला
मैं एक जंगली गुलाब हूँ

 


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