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कविता

कोलंबस का जहाज

कुँवर नारायण


बार-बार लौटता है
कोलंबस का जहाज
खोज कर एक नई दुनिया,
नई-नई माल-मंडियाँ,
हवा में झूमते मस्तूल
लहराती झंडियाँ।

बाजारों में दूर ही से
कुछ चमकता तो है -
          हो सकता है सोना
          हो सकती है पालिश
          हो सकता है हीरा
          हो सकता है काँच...
                    जरूरी है पक्की जाँच।

जरूरी है सावधानी
         पृथ्वी पर लौटा है अभी-अभी
         अंतरिक्ष यान
         खोज कर एक ऐसी दुनिया
                  जिसमें न जीवन है - न हवा - न पानी -

 


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