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कविता

मामूली जिंदगी जीते हुए

कुँवर नारायण


जानता हूँ कि मैं
दुनिया को बदल नहीं सकता,
न लड़ कर
उससे जीत ही सकता हूँ

हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ
और उससे आगे
एक शहीद का मकबरा
या एक अदाकार की तरह मशहूर...

लेकिन शहीद होना
एक बिलकुल फर्क तरह का मामला है

बिलकुल मामूली जिंदगी जीते हुए भी
लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैं

 


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