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कविता

मिर्च का शहद

रति सक्सेना


इस वक्त
मैं बरसात में भीगती हुई
मिर्ची चुन रही हूँ, नन्ही लेकिन तड़ाकेदार मिर्च
मधुमक्खी की आँख की तरह सुर्ख
शहद की तरह चटाखे दार

शहद और उस लाल मिर्च में
बस अंतर इतना ही है कि
शहद जीभ पर आते ही घुल जाता है
फिर नसों में आराम से पसर कर सो जाता है
मधुमेह की शक्ल में

लेकिन मिर्च जीभ पर रखते ही
बारूद सी धमक जाती है
फिर नसों से होती हुई
सीधे दिल में पहुँच
आदर्श गृहिणी सी
झाड़ू पटकन में लग जाती है

मैंने चुनी हुई नन्ही मिर्चों को
खाने की मेज के बिल्कुल बीचोंबीच रख दिया
अब मैं ऐसे विशेषज्ञ की तलाश में हूँ,
जो मेरी मिरच को शहद सा मीठा बताए

 


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