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					अक्सर मेरे तलवे खुजलाते हुए 
					जड़ों को याद करते हैं 
					 
					अक्सर मैं अपनी जड़ों को खोजती 
					न जाने कहाँ कहाँ भटक आती हूँ 
					 
					बहुत दूर नहीं हैं जड़ें मेरी 
					कुछ पाँच फुट और कुछ इंच नीचे 
					 
					यह रास्ता लंबा नहीं 
					तो बहुत छोटा भी नहीं 
					उतरते उतरते अक्सर शाम हो जाती है 
					और मेरे तलवे 
					खुद की परछाईं में खो जाते हैं 
					 
					मेरे सामने तश्तरी में रखी मछली 
					उन सब रंगों को आग के हवाले कर आई 
					जो उसे समंदर ने दिये थे 
					 
					रंगों का क्या, वे मंडराते फिरते हैं 
					बादलों से समंदर तक, समंदर से मछलियों 
					और मछलियों से दरख्तों तक 
					फूलों ने अपने रंगो के रहस्य को कभी उजागर नहीं किया 
					 
					लेकिन उस दिन केंचुए ने बताया था कि 
					फूलों ने सारे रंग अँधेरे के उन जीवों से लिये 
					जो उजालों में आना पसंद नहीं करते 
					तितलियाँ फूलों से रंग ले चिड़ियाओं को दे आती है 
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