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आज उनसे मुद्दई कुछ मुद्दआ कहने को है
यह नहीं मालूम क्या कहवेंगे क्या कहने को है
देखे आईने बहुत, बिन ख़ाक़ हैं नासाफ़ सब
हैं कहाँ अहले-सफ़ा, अहले-सफ़ा कहने को हैं
दम-बदम रूक-रुक के है मुँह से निकल पड़ती ज़बाँ
वस्फ़ उसका कह चुके फ़व्वारे या कहने को है
देख ले तू पहुँचे किस आलम से किस आलम में है
नालाहाए-दिल[1] हमारे नारसा[2] कहने को है
बेसबब सूफ़ार[3] उनके मुँह नहीं खोले है 'ज़ौक़'
आये पैके-मर्ग[4] पैग़ामे-क़ज़ा कहने को है
शब्दार्थ:
1. दिल का रोना
2. लक्ष्य तक न पहुँचने वाले
3. तीर का मुँह
4. मृत्यु का दूत
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