अँधेरे की शक्ल पहचानने लगा हूँ मैं उजाले को आवाज से जानने लगा हूँ मैं मगर समय की कोई झरी हुई पत्ती नहीं हूँ मैं कि मैं फिर जन्म लेना चाहता हूँ मुझे अपने गर्भ में जगह दे जिन्दगी।
(नशा करने की प्रबल इच्छा की स्थिति)
हिंदी समय में प्रदीप जिलवाने की रचनाएँ