अंगुलिमाल नाम का एक बहुत बड़ा डाकू था। वह लोगों को मारकर उनकी उँगलियाँ काट लेता था और उनकी माला पहनता था। इसी से उसका यह नाम पड़ा था। आदमियों को लूट लेना,
उनकी जान ले लेना, उसके बाएँ हाथ का खेल था। लोग उससे डरते थे। उसका नाम सुनते ही उनके प्राण सूख जाते थे।
संयोग से एक बार भगवान बुद्ध उपदेश देते हुए उधर आ निकले। लोगों ने उनसे प्रार्थना की कि वह वहाँ से चले जाएँ। अंगुलिमाल ऐसा डाकू है, जो किसी के आगे नहीं
झुकता।
बुद्ध ने लोगों की बात सुनी, पर उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला। वह बेधड़क वहाँ घूमने लगे।
जब अंगुलिमाल को इसका पता चला तो वह झुँझलाकर बुद्ध के पास आया। वह उन्हें मार डालना चाहता था, लेकिन जब उसने बुद्ध को मुस्कराकर प्यार से उसका स्वागत करते देखा
तो उसका पत्थर का दिल कुछ मुलायम हो गया।
बुद्ध ने उससे कहा, 'क्यों भाई, सामने के पेड़ से चार पत्ते तोड़ लाओगे?'
अंगुलिमाल के लिए यह काम क्या मुश्किल था! वह दौड़ कर गया और जरा-सी देर में पत्ते तोड़कर ले आया।
'बुद्ध ने कहा, अब एक काम करो। जहाँ से इन पत्तों को तोड़कर लाए हो, वहीं इन्हें लगा आओ।'
अंगुलिमाल बोला, 'यह कैसे हो सकता है?'
बुद्ध ने कहा, 'भैया! जब जानते हो कि टूटा जुड़ता नहीं तो फिर तोड़ने का काम क्यों करते हो?'
इतना सुनते ही अंगुलिमाल को बोध हो गया और वह उस दिन से अपना पेशा छोड़कर बुद्ध की शरण में आ गया।