रास्ते में किनारे एक बड़ी-सी चट्टान पड़ी था, और उस पर एक टोड (जहरीला मेढक)। दाविद टोड पर निशाना साधने लगा।
- मारना मत - खुआन बोला।
दाविद ने हथियार नीचे कर लिया और आश्चर्य से अपने छोटे भाई की ओर देखा।
- वह गोली की आवाज सुन सकता है - खुआन बोला।
- पागल हो गए हो? झरना अभी पंद्रह किलोमीटर दूर है।
- हो सकता है कि झरने के पास होने की बात गलत हो, बल्कि मुझे तो लगता है किसी कंदरा में छुपा होगा।
- नहीं - दाविद बोला - और अगर वह किसी कंदरा में भी होगा, तो भी ऐसा कभी नहीं सोचेगा कि यह मौजूदगी हमारी है।
उधर टोड अपने बड़े से, खुले मुँह में साँस भरता, हौले हौले डोलता रहा, और अपनी उनींदी आँखों के पीछे से एक मुट्ठी अशुद्ध हवा के बीच दाविद को देखता रहा। दाविद ने
वापस अपनी रिवाल्वर तान ली, इत्मीनान से निशाना साधा और घोड़ा दबा दिया।
- उसे नहीं लगी - खुआन बोला।
- उसे ही लगी - दाविद का जवाब था।
वे चट्टान के करीब आ गए।
टोड के होने की जगह पर एक हरे रंग का मलबा छप गया था।
- क्यों, ...नहीं लगी?
- हाँ हाँ, लगी... खुआन बोला।
वे अपने घोड़ों की तरफ बढते रहे। वही ठंडी हवा एक धार की तरह बह रही थी जिसने पूरे सफर उनका साथ दिया था, लेकिन नजारे बदलने लगे, सूर्य पहाड़ों के पीछे की ओर बुझ
रहा था, एक पहाड़ी के पैर के पास, कोई धुँधली छाया दूसरी अनेक छोटी छायाओं को छुपा रही थी, चोटियों पर कुंडली की तरह लिपटी बर्फ ने चट्टानों का सा भूरा रंग पहन
लिया था। दाविद ने अपने कंधों के उपर से एक कंबल उछाला, जो आराम करने के लिए जमीन पर बिछा दिया गया, और फिर, यांत्रिक तरीके से रिवाल्वर में गोली भरने लगा।
दाविद जब तक हथियार तैयार करता, और गोली की पाउच को उछालकर फेंकता रहा, खुआन चोरी छिपे उसके हाथों को देखता रहा, अलग अलग हरकतें करती हुईं उसकी उँगलियाँ जैसी
मरी हुईं-सी लग रही थीं, हरकतों से विरक्त।
- चलें? - दाविद ने पूछा।
- खुआन ने सहमति दी।
सड़क पतली और ढालू थी और घोड़ों को उपर चढ़ पाने में मशक्कत करनी पड़ रही थी, चट्टानों और पिछले कुछ दिनों में हुई बारिश से बनी नमीं के कारण वे बार बार फिसल जा रहे
थे। दोनों भाई चुपचाप चले जा रहे थे। कुछ और दूर चलने पर उनका सामना महीन, और लगभग अदृश्य बूँदों वाली बारिश से हुआ, लेकिन बूँदा-बाँदी जल्द ही रुक भी गई। तब तक
अँधेरा बिखरने लगा था, जब वे एक दूरी से ही गुफाओं को देख सकते थे। पहाड़ अभी दिख रहा था, और एक ऐसे केंचुए की तरह पड़ा था जिसे कि लोग 'सेर्रो दे लोस ओखोस'
(आँखों के पहाड़) - के नाम से जानते हैं।
- उधर चलकर देखें क्या, वो है कि नहीं? क्या कहते हो? - खुआन ने पूछा।
- कोई मतलब नहीं वहाँ जाने का। मुझे यकीन है कि वो झरने से आगे बढ़ चुका है। चूँकि यह राह हमेशा चलती रहती है, इसलिए उसे पता होगा कि यहाँ उसे कोई भी देख सकता
है।
- तो फिर क्या करोगे? - खुआन बोला।
और महज एक ही लमहे बाद फिर से पूछा :
- और अगर उस शख्स ने हमसे झूठ बोला हो तो?
- किसने?
- उसी ने, जिसने हमें बताया कि उसे उसने देखा है।
- लेयांद्रो? नहीं, ऐसा तो नहीं लगा कि उसने मुझसे झूठ बोला हो। उसने तो कहा कि वह झरने के आस-पास ही छुपा है, पक्के तौर पर वहीं कहीं। तुम देख लेना।
रात की पहली पहर के चढ़ आने तक वे बढ़ते रहे। एक गहन कालिमा की चादर ने उन्हें घेर लिया, अँधेरे में, जहाँ पेड़ पौधों तक को नहीं देखा जा सकता था, ऐसे धुर निर्जन
में दूर दूर तक सिर्फ एकांत दिखाई दे रहा था। उन दोनों के सिवाय, एक मात्र भौतिक उपस्थिति के साथ, एकांत। घोड़े पर सवार रहते हुए, खुआन अपनी गर्दन पर झुका हुआ
उसके संभावित पदचिह्न खोजने की जुगत करता रहा। जब तक उसे पता चले कि वे उस चोटी पर पहुँच चुके हैं, एक समतल-सा भूखंड आ गया। दाविद ने कहा कि अब उन्हें पैदल ही
चलना चाहिए। वे घोड़ों से उतर गए, और उन्हें एक चट्टान से बाँध दिए। बड़ा भाई अपने घोड़े की गर्दन पर थपकियाँ देने लगा, पीठ भी थपकाई और उसके कान में कुछ
फुसफुसाया।
- काश कि तुम्हें कल बर्फ न झेलनी पड़े।
- क्या अब हम नीचे उतरेंगे? - खुआन का प्रश्न था।
- हाँ - दाविद का उत्तर - ठंड नहीं लग रही तुम्हें? दर्रे में ठहरकर अगले दिन का इंतजार करना ही बेहतर होगा। वहीं आराम भी करेंगे। तुम्हें अँधेरे में नीचे उतरने
से डर तो नहीं लग रहा?
- नहीं। उतरते हैं, अगर तुम चाहो।
तत्क्षण से ही वे आराम की मुद्रा में आ गए। दाविद आगे आगे चलता रहा, एक छोटी-सी लालटेन और रोशनी की लकीर को थामे हुए, जो उसके और खुआन की टाँगों के बीच झूल रही
थी, एक निमिष भर के लिए एक वृत्ताकार अँधेरे ने उनके दरम्यान जगह ली, जिसे कि छोटे भाई द्वारा कुचल दिया जाना था। बस उतना ही वक्त बीता था, कि खुआन की साँसें
गहरी चलने लगीं थीं और ढलान की रूखी चट्टानों ने उसकी बाँह को खरोंचों से भर दिया था। उसे सामने सिर्फ रोशनी का चकत्ता दिखा, लेकिन तुरंत ही उसने भाई के साँसों
की आवाज महसूस की और उसके आने की आहट भी सुनी : रास्ता फिसलन और ढलान का था, इसलिए काफी सावधानी से बढ़ना चाहिए था, ऊँचाई और गड्ढों की टोह लेते हुए। जैसा कि
दाविद कर रहा था, हरेक कदम पर जमीन की थाह लेते हुए, पकड़कर आगे बढ़ सकने वाला कोई मुकम्मल सहारा खोज चलता रहा, फिर भी कई बार गिरते गिरते बचा था। जब तक वे दर्रे
तक पहुँचते, खुआन को लगने लगा था कि आराम करने का वक्त जरूरत से कई घंटे बाद आया है। वह पूरी तरह से थक चुका था और, तभी, उसने पास ही कहीं झरने की आवाज सुनी। यह
एक बड़ी और भव्य, पानी की चादर थी जो एक ऊँचाई से लगातार बरसती रहती थी, एक झील के उपर, जिसके पानी से एक दूसरी नहर का पेट भरता था, बादलों के गर्जन की तरह
गूँजती हुई। झील के चारों तरफ काई और दूसरी वनस्पतियाँ पूरे साल हरी रहती थीं और लगभग बीस किलोमीटर की चौहद्दी के बीच यह इकलौता हरा-भरा भूखंड था।
- हम यहाँ आराम कर सकते हैं - दाविद बोला।
वे एक दूसरे के पास बैठ गए। रात बर्फ की मानिंद ठंडी थी, हवा नम थी, आकाश मेघाच्छादित। खुआन ने एक सिगरेट सुलगाई। था तो वह थका हुआ, लेकिन फिर भी उसे नींद नहीं
आ रही थी। उसने भाई का ढीला पड़कर उबासी लेना महसूस किया, कुछ ही देर में उसने हिलना डुलना बंद कर दिया, उसकी साँसें ज्यादा व्यवस्थित क्रम में चलने लगीं, थोड़ी
थोड़ी देर पर सुरसुरी की आवाज करती हुईं। अब सोने की बारी खुआन की थी, सो वह ऐसी कोशिश भी करने लगा। चट्टान के उपर अपनी देह को बिछाकर वह दिमाग को हलचलों से खाली
करने की चाहत किया, लेकिन ऐसा हो न सका। उसने दूसरी सिगरेट भी सुलगा ली। तीन महीने पहले जब वह देहात के, अपने अहाते वाले घर पहुँचा था, तब तक उसे अपने भाइयों से
मिले दो वर्ष बीत चुके थे। दाविद तो फिर भी वैसे का वैसा था, जिसके लिए नफरत और प्यार करने की चीजें बपचन की ही तरह पहले से तय थीं, लेकिन लेओनोर बदल चुकी थी,
बच्ची तो वह बिलकुल ही नहीं रह गई थी, जो सजा भुगत रहे रेड इंडियंस पर पत्थर फेंकने के लिए खिड़की से झाँकती रहती थी, बल्कि तब तक वह एक लंबी काया वाली युवती बन
चुकी थी, एक स्त्री की सारी भंगिमाओं से लैश, और उसकी खूबसूरती भी उसके चारो ओर उसके सीधेपन की तरह लिपटी रहती थी। एक हिंसक खूबसूरती। उसकी आँखें किसी मशाल की
तरह जलती रहती थीं। बहन को याद करते हुए हर बार ही खुआन के खयालों में वह शक्श आ जा रहा था जिसे कि वे तलाश रहे थे, ऐसे में वह एक उनींदापन महसूस करने लगता, जो
उसकी आँखों से धब्बे की तरह सटती जाती थी, पेट में एक खाली जगह भर आती थी, जैसे आग से भरा कोई रास्ता।
उस दिन की भोर में, जब उसने कामिलो को घर के अहाते और अस्तबल को विलगाने वाले मैदान के बीच घोड़ों को तैयार करने के लिए गुजरते देखा, तो वह हड़बड़ी में उठी हुई थी।
- चुपचाप निकल लेते हैं - दाविद ने कहा था - बच्ची न जागे तो ही ठीक होगा।
पहाडी के एक खास हिस्से की चोटी से गुजरते हुए, या फिर पैदल चलकर एक तरफ के बोए खेतों, और कुछ ही दूर जाकर खतम हो जाने वाली घर के पास की सड़क से उतरते हुए, वह
एक अजीब सी वेदना से भरा रहा। इसी क्र्म में उसने अपने उपर झुंड के झुंड उमड़ते मच्छरों का एहसास भी नहीं रहा, जो उस शहरी आदमी की चमड़ी के हरेक खुले हिस्से को
यथासंभव निचोड़े जा रहे थे। आगे, चढ़ाई शुरू करने के साथ साथ उसका विषाद जाता रहा। वह कहीं से भी एक अच्छा घुड़सवार नहीं था, और सामने थीं चट्टानों की खतरनाक
ढलानें, किसी डरावने प्रलोभन की तरह दिखते, पतले साँप सरीखे रास्ते, दूसरे किनारों पर बिलकुल खुले हुए। वह भरसक चौकन्ना रहा, घुड़सवारी के दौरान हरेक डग में
सतर्क, अपने आत्मविश्वास को सहेजते, बिलकुल पास पास आ जाते चक्करदार रस्तों पर एकाग्र रहते हुए।
- वो देखो! - खुआन ने लड़खड़ाती आवाज में कहा।
- तुमने तो मुझे डरा ही दिया - बोला - मुझे लगा तुम सो रहे थे।
- चुप रहो और वो देखो।
- क्या?
- वहाँ, उस तरफ।
पहाड़ी की दूसरी ओर, जहाँ से झरने का शोर उठ रहा था, एक टिमटिमाती-सी रोशनी दिख रही थी।
- वहाँ कोई अलाव है - दाविद बोला - यकीनन, ये वही है। चलो।
- क्या सुबह होने तक इंतजार कर लिया जाय? - खुआन फुसफुसाया, अपने सूखे और जलते कंठ की मदद से, जो मानो जल रहा था - अगर वह भागना शुरू कर देगा तो हम उसे इस
अँधेरे की धुंध में कभी नहीं पकड़ पाएँगे।
- पानी के शोर के आगे उसे हमारी आहट नहीं सुनाई देगी - दाविद ने विश्वास के साथ जवाब दिया, अपने भाई को हाथ की टेक से उठाते हुए। - चलो।
दाविद, ढेर सारे इत्मीनान के साथ, कूद पड़ने के लिए तत्पर देह के साथ झुका हुआ, पहाड़ी से चिपककर सरकता रहा। खुआन भी अपनी तरफ से बढ़ता रहा, लड़खड़ाता, लेकिन आँखें
उस रोशनी पर एकाग्र जिसकी लौ कभी मद्धम तो कभी तेज हो रही थी, मानों कोई उसे पंखे से हवा कर रहा हो। करीबी बढ़ते जाने के साथ अलाव की रोशनी उन्हें तुरंत तुरंत
चट्टानों के उतार चढ़ाव, रूखे पत्थरों, झुरमुटों और झील के किनारे की पहचान करने में मदद करने लगी, लेकिन आगे बढ़ना फिर भी मुश्किल था। खुआन का विश्वास अब तक दृढ़
हो चुका था कि वो जिसे खोज रहे हैं, वह बेशक वहीं है, उन्हीं सारी छायाओं के बीच कहीं छुपा हुआ, रोशनी के ठीक पास कहीं।
- वो रहा - दाविद बोला - दिखा?
अलाव अपनी नाजुक फुसफुसाहट के बीच उस अँधेरी और धुँधली आकृति को रोशन कर रहा था, जो थोड़ी गर्मी की ख्वाहिश के साथ अलाव के पास था।
- क्या करें? - खुआन ने रुकते हुए पूछा।
लेकिन दाविद तब तक उसके पास से नदारद था, वह क्षण भर में ही उसके दिखे चेहरे की तरफ दौड़ गया था। खुआन ने अपनी आँखें मूँद लीं, उसने पालथी मारे बैठे रेड इंडियन
का खयाल किया, आगे की लपटों की ओर बढ़े उसके लंबे हाथ, अलाव की तिनगियों से परेशान, आँख की पलकें : अचानक कुछ नीचे की ओर धमका, जब तक कि दो बलिष्ट भुजाओं ने उसकी
गर्दन को जकड़ नहीं लिया, उसे यही लगा होगा कि कोई जानवर है। अँधेरे की छायाओं के बीच से हुए उस अप्रत्याशित हमले के वक्त वह, बेशक, घनघोर आतंक से भर गया होगा,
निश्चय ही वह अपना बचाव कर पाने में असफल था, हद से हद वह एक घोंघे की तरह अपनी देह की खोल में और भी ज्यादा सिकुड़ सकता था ताकि चोट का असर कुछ कम हो, और अपनी
आँखें बड़ी से बड़ी परिधि में खोल सकता था, झुटपुटे के बीच से आक्रमणकारी को पहचान पाने की कोशिश करते हुए। आगे, उसने एक जानी पहचानी आवाज सुनी, 'तुमने ये क्या
किया, सूअर?' 'कुत्ते, क्या कर दिया तूने?' खुआन ने दाविद की आवाज सुनी और देखा कि वह लात और जूतों से वार किए जा रहा है, कई बार तो उसके जूते की नोक रेड इंडियन
की बजाय चट्टानों पर लग जा रही थी। यह उसे और भी ज्यादा गुस्सा दिलाता रहा होगा। जब तक खुआन वहाँ पहुँचता, पहले तो महज एक गुर्राहट ही सुनाई दे रही थी, मानो रेड
इंडियन गरारे कर रहा हो, लेकिन बाद में दाविद की सख्त आवाजें भी आने लगीं, धमकियाँ और गाली और अपमान से भरे शब्द। खुआन ने झट से अपने दाएँ हाथ में रिवाल्वर ले
लिया, उसकी उँगलियाँ धीरे-धीरे रिवाल्वर के घोड़े पर दबने लगीं। अचंभे के बीच उसने सोचा कि अगर उसने यों ही गोली चलाई, तो वह भाई को भी लग सकती है, लेकिन हथियार
को छोडा नही, दूसरी तरफ, जब तक कि वह अलाव की तरफ बढ़ता, उसे एक गहन सन्नाटा मिला।
- बहुत हुआ दाविद! - वह चिल्लाया - उसे गोली से मारो। उसकी देह से मत उलझो?
कोई जवाब नहीं आया। अब खुआन को वे दिखाई भी नही दे रहे थे, भाई और रेड इंडियन एक दूसरे से गुत्थमगुत्था होकर रोशनी के घेरे से बाहर निकल गए थे। खुआन उन्हें देख
तो नहीं, लेकिन सुन जरूर रहा था, आघात की रूखी आवाजें, और चीत्कार और हाँफना।
- दाविद - भाग जाओ वहाँ से - मैं गोली चलाने जा रहा हूँ।
हड़बड़ी और बेचैनी के बीच, महज एक ही क्षण बाद उसने फिर से दुहराया।
- दाविद भाग वहाँ से। यकीनन मैं गोली चलाने वाला हूँ। फिर से कोई जवाब नहीं आया।
पहली गोली चला देने के बाद, खुआन कुछ देर के लिए हैरत के साथ खड़ा रहा, लेकिन फिर वह बिना निशाना साधे फायर करने लगा, तब तक, जब तक कि उसे कारतूस के डिब्बे को
ठोंकने से उपजा धात्विक कंपन न महसूस न होने लगा। वह बिना हिले-डुले खड़ा रहा, यह भी ध्यान नहीं दिया कि रिवाल्वर उसके हाथों से छूटकर उसके पैर पर गिर गया। झरने
की आवाज जैसे कहीं गुम हो गई थी, उसकी पूरी देह में एक झन्नाहट गुजरने लगी थी, त्वचा पसीने से नहा गई थी, साँसें बमुश्किल चल रही थीं। जल्द ही वह चिल्लाया।
- दाविद!
- मैं यहाँ हूँ, जानवर कहीं के! - दूसरी तरफ से आवाज आई, डर और गुस्से की मिली-जुली आवाज।
- तुम्हें होश है कि नहीं? तुम मुझे भी गोली मार देने वाले थे? पागल हो गए हो तुम?
खुआन तेजी से मुड़ा, अपनी फैली भुजाओं में भाई को भर लिया, समझ से परे की कोई बात बड़बड़ाने लगा, विलाप करने लगा और जैसे दाविद की किसी भी बात को न सुन रहा हो, जो
कि उसे धीरज रखने को कहता जा रहा था। इस तरह से हुई चूक को बार-बार कहते हुए खुआन ने कुछ ज्यादा ही समय ले लिया, सुबकते हुए। जब वह थोड़ा संयत हुआ, तो उसे रेड
इंडियन की याद आई।
- और वो, दाविद?
- वो? - दाविद अपना धैर्य वापस लाते हुए, दृढ़ शब्दों में बोला - तुम्हें क्या लगता है, कैसी होगी उसकी हालत?
अलाव जलता ही जा रहा था, लेकिन बेहद कमजोर लौ के साथ। खुआन ने अलाव से सबसे बड़े लट्ठे को उठाया और उसकी रोशनी में रेड इंडियन को खोजने लगा। उसने जैसे ही रेड
इंडियन को देखा, कुछ देर के लिए उसकी आँखें फटी ही रह गईं, लट्ठा हाथ से गिरा और बुझ गया।
- तुमने देखा था, दाविद?
- हाँ, मैंने देख लिया था। अब चलते हैं यहाँ से।
खुआन एकदम से सख्त हो गया था, कुछ भी नहीं सुनते हुए, और जैसे सब कुछ सपने में देखते हुए, कि जैसे दाविद उसे खींचते हुए पहाड़ी पर चला जा रहा था।
ऊपर चढ़ने में उन्हें काफी वक्त लगा। दाविद अपने एक हाथ में लालटेन थामे था, और दूसरे से खुआन को सहारा दे रहा था। खुआन, जो एक चिथड़े की तरह दिख रहा था - जो
मजबूत चट्टानों के बीच से सरकता चुपचाप समतल जमीन तक चला जाने वाला था, बिना किसी प्रतिरोध के।
थके हुए से दोनों, अचानक एक चोटी से फिसलकर नीचे आ गिरे। खुआन ने हाथों के बीच अपना घायल सिर थाम लिया था, ढेर सारी खरोंचों के साथ, स्थिर-सा, खुले मुँह से गहरी
गहरी साँसें लेता हुआ। जब तक कि उसकी चेतना लौटे, दाविद लालटेन की रोशनी में उसे निहार रहा था।
- चोट आ गई है न? - दाविद बोला - मैं अभी पट्टी करता हूँ।
अपनी रूमाल को दो हिस्सों में फाड़कर दोनों हिस्सों को खुआन के दोनों घुटनों पर बाँध दिया, जो पैंट के फटे हिस्से से बाहर झाँक रहे थे, खून से नहाए हुए।
- फिलहाल के लिए इतना ही, ताकि हमारे वापस लौटने तक घाव कहीं बढ़ न जाए। तुम्हें पहाड़ पर चढ़ने का बिलकुल भी तजुर्बा नहीं है। लौटने के बाद लेओनोर तुम्हारे घाव की
देख-रेख करेगी।
घोड़े काँप रहे थे और उनके नथुने नीली झाग से सने पड़े थे। दाविद अपने हाथों से उन्हें साफ किया, उनके पुट्ठों और रानों को थपथपाया, उनके कानों के पास जा प्यार से
फुसफुसाया,
- चलो, उठो अभी दूर हो जाएगी ठंड, गर्मियों में चलते हैं।
चढ़ाई के दौरान ही सुबह हुई। पहाड़ियों के बीच एक झीनी उजास छा गई। क्षितिज पर एक सफेद रंग की रोगन चढ़ने लगी, लेकिन गर्त और खाइयाँ फिर भी अँधेरे से भरी थीं। आगे
बढने से पहले, दाविद ने बोतल से पानी की एक लंबी घूँट चढ़ाई और उसे खुआन की तरफ बढ़ा दिया, जिसकी कि पीने की इच्छा नहीं थी। सुबह के समूचे वक्त में वे विपक्षियों
के इलाके की एक राह से गुजरते रहे, घोड़ों को उनकी मनचाही रफ्तार से चलने की आजादी दिए हुए। दोपहर के आस पास वे रुके और कॉफी बनाई। दाविद थोड़ा-सा पनीर बाकले के
साथ खाया, जो कामिलो ने उसके थैले में रख छोड़ा था। जब शाम हुई, तो उन्होंने दो लकड़ियाँ लेकर एक क्रॉस बनाया। और उससे एक पताका लटका दी, जिस पर लिखा था, सुबह।
घोड़े हिनहिनाते रहे : घर की सीमा का पहचान कराने वाले चिह्न देखकर, शायद।
- चलें - दाविद बोला। वक्त कब का हो चुका। मैं तो थक कर चूर हो गया हूँ। और तुम्हारे घुटने कैसे हैं?
खुआन ने उत्तर नहीं दिया।
- दुख रहे हैं? - दाविद ने फिर से पूछा।
- कल से मैं लीमा छोड़ दूँगा - खुआन बोला
- क्या छोड़ दोगे?
- वापस देहात के इस घर पर नहीं आऊँगा। मैं पहाड़ों से तंग आ चुका हूँ। अब से हमेशा शहर में ही रहूँगा। देहात के बारे में मुझे अब कुछ भी नहीं जानना।
- खुआन ने सामने देखा, दाविद यूँ आँखें चुरा रहा था जैसे कुछ खोजने की कोशिश कर रहा हो।
- नहीं, - खुआन बोला - हमें अभी यह सब साफ करना होगा।
- अच्छा - दाविद ने आवाज में नर्मी लाते हुए कहा - हुआ क्या तुम्हें?
खुआन वापस अपने भाई की तरफ आया, उदास चेहरे लेकिन भारी आवाज के साथ।
- क्या हुआ मुझे? तुम्हें पता है कि तुम क्या पूछ रहे हो? भूल गए झरने के पास के उस शख्स को? अगर मैं इस अहाते वाले घर में रहूँ, तो मुझे यह भूल जाना होगा कि यह
यहाँ पर हर रोज घटने वाली एक घटना नहीं है।
थोड़ा रुककर फिर से कुछ जोड़ना चाहा, 'जैसे तुम', लेकिन चुप रह गया।
- वह एक संक्रमित हो गया कुत्ता था - दाविद बोला... तुम्हारा शक सिर्फ एक बकवास है। शायद तुम भूल रहे हो कि तुम्हारे भाई ने तुम्हारे लिए क्या क्या किया है?
खुआन का घोड़ा ठीक उसी वक्त रुक गया और झुकने और पिछले पैरों पर खड़ा होने लगा।
- अब यह मेरे काबू से बाहर होने वाला है - खुआन बोला।
- लगाम ढीली करो। उसका गला कस रहा है।
खुआन ने लगाम छोड़ी और घोड़ा ठीक हो गया।
- तुमने मेरा जवाब नहीं दिया। - दाविद बोला। - तुम भूल गए क्या कि हम उसकी तलाश करने क्यों गए थे?
- नहीं - खुआन का जवाब - मैं भूला नहीं हूँ।
दो घंटे बाद वे कामिलो की झोपड़ी तक पहुँचे, जो थोड़ी ऊँचाई पर बनी थी, फॉर्म हाउस और अस्तबल के बीच। इससे पहले कि दोनो भाई दरवाजे पर पहुँचकर खड़े हों, वह खुला और
चौखटे पर कामिलो नमूदार हुआ। बाँहों पर पड़ती झोपड़ी के खर पतवारों की छाया और थोड़े झुके सिर के साथ वह उनकी ओर बढ़ा और दोनों घोड़ों के बीच पहुँचकर, रुकते हुए उनकी
लगामें पकड़ लिया।
- सब ठीक ठाक? दाविद ने पूछा
कामिलो ने नहीं के अंदाज में मुंडी घुमा दी।
- बच्ची लेओनोर...
- क्या हो गया लेओनोर को? खुआन बीच में बोल पड़ा।
अपनी लड़खड़ाती जुबान में कामिलो बताने लगा कि लेओनोर ने अपने कमरे की खिड़की से, एकदम भोर के वक्त अपने भाइयों को देख लिया था, और जबकि वे घर से थोड़ी दूरी पर ही
रहे होंगे, उसने उन्हें खुले मैदानों में बूटों और चढ़ाई वाली पतलूनों में देख लिया था, अपने घोड़े तैयार किए जाने का आदेश देते हुए। कामिलो ने, दाविद के निर्देश
के मुताबिक, लेओनोर की इस बात को मानने से इनकार कर दिया। फिर वो खुद ही एक जिद के साथ अस्तबल में घुसी, किसी पुरुष की तरह अपने हाथों से कोंचकर घोड़े को उठाया,
और कंबल और दूसरे सामान, अस्तबल के सबसे छोटे और अपने प्यारे घोड़े कोलोरादो पर रख दिया।
जब वह घोड़े पर सवार होने की तैयारी कर रही थी, तो घर के नौकर और खुद कामिलो उसे पकड़ लिए... काफी वक्त तक वे उस बच्ची की मार और गालियाँ सहते रहे, जो, इसलिए दी
जा रही थीं कि लेओनोर को अपने भाइयों के पीछे पीछे उनकी ओर जाने दिया जाय।
- ओह! उसे इसका बदला चुकाना ही होगा - दाविद बोला - यह कमीनी खासिंता थी, मुझे पक्का पता है। हमें उस रात लेआंद्रो से बात करते उसने सुन लिया था, जब वह मेज ठीक
कर रही थी। वो तो गई।
- लेओनोर काफी हिंसक हो गई थी - कामिलो जारी रहा - नौकरों-चाकरों को गालियाँ देने और उन्हें नोचकर घायल कर देने के बाद वह जोर-जोर से चिग्घाड़ने लगी और वापस घर
में आ गई।
- लेओनोर को एक शब्द भी पता नहीं चलना चाहिए - खुआन बोला।
- हाँ, एक शब्द भी नहीं - दाविद सहमत हुआ।
कुत्तों का भूँकना सुन लेओनोर जान गयी कि वे आ गए हैं। वह अर्धनिद्रा में थी जब एक तेज गुर्राहट रात को चीरती हुई उसकी खिड़की के नीचे से गुजरी, भाप की मानिंद।
यह हाँफता हुआ जानवर स्पोकी था, जिसने अपनी गुर्राहट के सनका देने वाले से उनके आने की बात की पुष्टि कर दी थी। बाद में उसने घोड़े की हल्के से पड़ रही टापें
सुनीं और, छोटी, गर्भवती कुतिया दोमितिला की दहाड़ें भी। कुत्तों का आक्रोश धीरे धीरे कम हुआ, उनका भूँकना धीरे-धीरे हाँफने तक में सिमट गया, जब उन्हें हमेशा की
ही तरह इस बार भी दाविद ही मिल गया। लेओनोर ने एक झरोखे से, भाइयों को घर के पास आते देखा और मुख्य द्वार के खुलने और बंद होने की आवाजें सुनीं। वो उनके सीढ़ियों
से चढ़ने और अपने कमरे में आने का इंतजार करती रही। दरवाजा खुलते ही खुआन ने लेओनोर को छूने के लिये हाथ बढ़ा दिया।
- हैलो मेरी बच्ची - दाविद बोला।
लेओनोर ने खुद को आगे बढ़ाकर छोड़ दिया ताकि वे उसे गले लगा सकें। खुआन ने लैंप जलाकर रोशनी कर दी।
- मुझे क्यों नहीं बताया? तुम दोनों को मुझे जरूर बताना चाहिए था। बाद में तो मैं खुद ही आ जाती, लेकिन कामिलो ने मुझे ऐसा करने नहीं दिया। तुम्हें उसे सजा देनी
ही होगी, दाविद, अगर तुम देखते जैसे उसने मुझे पकड़ रखा था, तो तुम्हें वह मेरा घोर अपमान और मुझ पर की जा रही क्रूरता लगती। मैं उससे मिन्नतें करती रही कि मुझे
जाने दे, और उसने एक न सुनी।
लेओनोर बोल तो ज्यादा ताकत के साथ रही थी, लेकिन उसकी आवाज बार-बार टूट जाती थी। उसके बाल मुड़े हुए और अस्त-व्यस्त थे और पैर नंगे। दाविद और खुआन उसे शांत करने
की कोशिश कर रहे थे, वे उसके बालों को सहला रहे थे, उस पर मुसकान छोड़ रहे थे और उसे 'बच्ची', 'मेरी प्यारी बच्ची' कहे जा रहे थे।
- हम तुम्हें परेशान नहीं करना चाहते थे - दाविद बोला - और हमने निकलने का फैसला एकदम से ले लिया। तब तक तुम सोई हुई थी।
- हुआ क्या? लेओनोर ने पूछा।
खुआन ने बिस्तरे से एक कंबल उठाया और अपनी बहन को उसमें लपेट दिया। लेओनोर तब तक चुप हो गई थी। वह थक चुकी थी, उसका मुँह अधखुला रह गया था लेकिन निगाहों में फिर
भी कोई आतुरता थी।
- कुछ नहीं - दाविद बोला - कहीं कुछ भी नहीं हुआ। वह हमें मिला ही नहीं।
लेओनोर के चेहरे से तनाव दूर हुआ, उसके होंठों पर एक राहत का भाव उभर आया।
- लेकिन कभी न कभी तो मिलेगा ही - दाविद बोला। ऐसी भंगिमा के साथ, जिसमें लेओनोर को उठ जाने का निर्देश भी झलक रहा हो। वह पीछे की ओर मुड़ गया।
- एक सेकेंड - लेओनोर बोली - अभी जाओ नहीं।
खुआन तब तक हिला भी नहीं था।
- हाँ? - दाविद बोला - क्या हुआ, मेरी गुड़िया?
- अब उसे ज्यादा खोजने की जरूरत नहीं है।
- तुम उसकी फिक्र मत करो - दाविद बोला - और यह सब भूल जाओ। यह पुरुषों का मामला है। सब हम पर छोड़ दो।
लेओनोर की रुलाई फिर से फूट पड़ी, इस दफा कुछ ज्यादा ही तेज। वो अपने हाथों को माथे पर रख ली थी, पूरे जिस्म में जैसे विद्युत का प्रवाह होने लगा था, और उसकी
चीखें कुत्तों के लिए एक नए ही तरीके से अलार्म बन गईं, जो दो पैरों पर खड़े होकर खिड़की की तरफ मुह करके भौंकना शुरू कर दिए। छोटा भाई फिर भी बिना हिले-डुले
चुपचाप खड़ा रहा।
- ठीक है - दाविद बोला - तुम रोना बंद करो और हम उसे खोजना।
- झूठ, तुम उसे मार डालोगे। मैं जानती हूँ तुम्हें।
- नहीं मारूँगा मैं उसे - दाविद बोला - अगर तुम्हें लगता है कि उस कमीने को सजा नहीं मिलनी चाहिए...
- उसने मेरे साथ कुछ भी नहीं किया - लेओनोर एक झटके में बोल गई, अपने होटों को चबाते हुए - सब झूठ था।
- मैं इसे नहीं मान सकती कि वह हर तरीके से मेरा पीछा करता था - लेओनोर बुदबुदाई - सारे दिन मेरे पीछे एक साये की तरह लगा रहता था।
- गुनहगार दरअसल मैं हूँ - दुख भरी आवाज में, दाविद बोला - एक औरत का खुले मैदानों में अकेले फिरना खतरनाक होता। मैंने उसे हुक्म दिया था कि तुम्हारा खयाल रखे।
मुझे एक रेड इंडियन पर ऐतबार नहीं करना चाहिए था। सब एक जैसे हैं।
- उसने मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया, दाविद - लेओनोर थोड़ी संयत हुई। - मुझ पर यकीन करो, मैं बिलकुल सच कह रही हूँ। कामिलो से पूछ लो, कहीं कुछ भी नहीं हुआ था।
हाँ, इतना तक जरूर हुआ... मै सिर्फ खुद को उसकी निगरानी से मुक्त करना चाहती थी, इसलिए वह पूरी कहानी मैंने खुद ही गढ़ी थी। कामिलो को सब पता है, पूछ लो उससे।
लेओनोर ने अपनी हथेली के पिछले हिस्से से गालों को पोछ लिया। उसने कंबल उठाया और अपने कंधों पर डाल लिया। लगा जैसे अभी अभी वह किसी दुःस्वप्न से बाहर आई है।
- हम इस पर कल बात करेंगे - दाविद बोला - अभी हम थके हुए हैं। सोना जरूरी है।
- नहीं - खुआन बीच में आ धमका।
लेओनोर ने उसे अपने काफी करीब पाया, वह तब तक भूल चुकी थी कि दाविद के साथ खुआन भी था। उसका चेहरा सोच की लकीरों से भर गया, उसकी नाक का निचला हिस्सा नम हो गया,
स्पोकी के टपकते थूथन की तरह।
- क्या तुम फिर से दुहराओगी, जो तुमने अभी अभी कहा? . एक अजीब तरह की भंगिमा के साथ खुआन बोला - फिर से बताओ कि कैसे तुमने हम सबसे झूठ बोला।
- खुआन - दाविद बोला - मुझे लगता है तुम उस पर यकीन नहीं कर पाओगे। अभी वह हमें झाँसा देना चाहती है।
- मैंने सच कहा था - लेओनोर गिड़गिड़ती हुई सी बोली, एक के बाद एक दोनों भाइयों की तरफ देखती हुई। - उस दिन मैंने उसे खुद को अकेला छोड़ देने का हुक्म दिया, लेकिन
उसने इसे नही माना। मैं नदी तक गई और वह मेरे पीछे-पीछे आता रहा। और मैं सुकून से नहा भी नहीं पाई। वह बुत की तरह खड़ा मुझे घूरता रहा, किसी जानवर की-सी निगाहों
से, इसलिए मैं वापस आई और यही बात बता दी।
- रुको, खुआन - दाविद बोला - कहाँ चले? रुको?
खुआन मुड़कर दरवाजे तक पहुँच चुका था, जब दाविद ने उसे रोका, वह भड़क गया और एक मुँहफट की तरह अपमानित करने के लहजे में बोलने लगा - उसने बहन को वेश्या और भाई को
सूअर और निर्दयी जैसे शब्दों से नवाजा, दाविद, जो उसका रास्ता रोकने की कोशिश कर रहा था, को एक जोर का धक्का दिया और घर से कूदते-फाँदते बाहर निकल आया, कई तरह
की चोटों के निशान छोड़ता हुआ। लेओनोर और दाविद खिड़की से, उसका पागलो की तरह चिल्लाते हुए घर से बाहर के मैदान से गुजरना देखते रहे, वह अस्तबल में घुसा और थोड़े
ही समय बाद कोलोरादो की पीठ पर सवार होकर निकल आया। कोलोरादो, लेओनोर का चतुर घोड़ा, चुपचाप चलता रहा, अपनी लगाम थामे अनभ्यस्थ कलाइयों के निर्देश के मुताबिक :
शिष्टता के साथ मुड़ते, रास्ते बदलते और पूँछ के भूरे अयालों को पंखे की तरह हिलाते हुए, पहाड़ों के बीच के सँकरे रास्तों की कगारों तक पहुँचते हुए, शहर तक। लेकिन
शहर पहुँचते ही वह बागी हो गया। पुट्ठे पर चोट करते ही वह सीधा खड़ा होकर हिनहिनाने लगा, वह किसी नर्तकी की तरह एक पूरा चक्कर घूम गया और वापस अपने मैदानों की
तरफ आ गया, तेज रफ्तार में भागते हुए।
वह उसे उछालकर फेंक देगा... लेओनोर बोली।
नहीं, तुम आराम से रहो। वह वैसे ही रहेगा।
बहुत सारे रेड इंडियन्स अस्तबल के दरवाजे तक निकल आए थे और छोटे भाई को हैरत से घूरे जा रहे थे, जो घोड़े पर सख्ती से सवार था, बार-बार उसकी बगलों में एड़ लगा
देता था और उसके माथे पर कलाई से चोट कर दे रहा था। चोट के असर में आकर कोलोरादो कभी इधर भागता था, तो कभी उधर, सनकी-सा होकर, वह चक्कर पर चक्कर लगाता रहा,
सँकरे से सँकरे रास्तों पर भी, और घुड़सवारी कर रहा खुआन उसकी पीठ पर बैठा सिपाही भर लग रहा था। लेओनोर और दाविद, उन दोनों का दिख जाना, फिर थोड़ी ही देर में गायब
हो जाना देखते रहे, आराम से, जैसे ऐसी घरेलू चीजों के आदी हों, और लगातार चुप रहे, मूर्ति की तरह खड़े। अचानक, कोलोरादो ने जैसे आत्मसमर्पण कर दिया : अपने दुर्बल
माथे को धरती तक झुलाते हुए, जैसे अपने किए पर शर्मशार होकर वह खुद ही शांत हो गया हो, गहरी-गहरी साँसें भरते हुए। तब उन्हें लगा कि वह लौट आया है - खुआन घोड़े
को चलाते हुए घर तक ले आया और दरवाजे के ठीक सामने रुका, लेकिन उतरा नहीं। जैसे उसे फिर से कुछ याद आ गया हो, वह पीछे मुड़ गया, दुलकी चाल में सीधे उस संरचना की
ओर बढ़ने लगा जिसका नाम 'ला मुग्रे' था। वहाँ, वह एक छलाँग लगाकर उतर गया। दरवाजा बंद था और खुआन ने ताले को अपने जूते की नोक से सम्मानित किया। फिर, नीचे मौजूद
इंडियंस को चिल्लाकर बोला, कि वे सारे बाहर आ जाएँ, कि उन सबकी सजा पूरी हो गई है। उसके बाद खुआन वापस घर की तरफ आया, धीरे-धीरे टहलते हुए। दरवाजे पर दाविद उसका
इंतजार कर रहा था। खुआन शांत दिख रहा था... वह पसीने से नहाया हुआ था और उसकी आँखें स्वाभिमान से जल रही थीं। दाविद उसके करीब आया, उसे कंधे से पकड़कर भीतर ले
गया।
चलते हैं यहाँ से - उसने कहा - बस थोड़ा वक्त और लगेगा, कि जितने में लेओनोर तुम्हारे घुटने ठीक कर दे।