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(जैसे ही हम वास्तविकता को जानने का प्रायास करते हैं
वह गायब हो जाती है - कार्ल यास्पर्स।)
चारों तरफ देखता हूँ -
शांति और प्रगति की राजधानी।
सर्वाधिक बुद्धिमान विचारों का प्रवाह,
एक पूरी फौज
असैनिक वर्दी में साठ लाख मंदबुद्धि लोग,
उत्पादन का साधन-तलवार।
(थोबड़ा भरा हुआ नीले दागों से
चमड़ी से चूती वोदका।)
ओ सुंदरी! कूड़े के पैकेट को ही अपना मर्द मान :
टी.वी.- पहला चैनल -तीन हजार सैकिंड
(अंधों और भैंगों के लिए)
दूसरे चैनल पर स्मारक-ही-स्मारक (नियमत: घोड़ों पर सवार)
हर मकान के लिए दो या इससे अधिक भी।
चार उँगुलियाँ
इंगित करती हुई, नि:संदेह, एक दूसरे को
पर बिना भर्त्सना के नहीं।
इतना प्यारा, इतना मूर्ख और इतना दयनीय है फैन्या -
किर्ली-मिर्ली और अज्ञात दिक्कू औरत का बेटा -
काट खा गया है अपने ही कूल्हे।
बाजारू नेतागिरी विज्ञान का प्रसिद्ध पी-एच.डी. भी
इसी विचार का है :
-बकवास करते चलो -
लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं।
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