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कविता

किसी का भी नाम लो

जसबीर चावला


ये पुरुषों का जंगल है
यहाँ
बेकायदा है
कायदा
उन्हीं की हुकूमत / डंडा
करते हैं शिकार
पड़ता है हाँका
*
मधुमिता
शहला
गीतिका
अनुराधा / फिजा
या
और भी
सब नाम हैं
सबके थे सपने
*
भरना चाहती थी
उड़ान
मुक्त आसमान में
पर कतरे गए
पिंजरे में कैद हुईं
मरीं / मारी गईं
ये जंगल है
पुरुषों का
पड़ सकता है हाँका
कहीं भी / कभी भी

 


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हिंदी समय में जसबीर चावला की रचनाएँ