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कविता

आँगन की लौकी

जसबीर चावला


आँगन में लगी लौकी
घर की लड़की
तेजी से बढ़े

लौकी लौकी की तरह
लड़की मुहावरे की तरह

नाखून गड़ा लौकी परखी गई
वक्त पर सब्जी बनी
परोसी गई
आँखें गड़ा लड़की तोली गई
हुई अगवा / मसली गई
पंचायत बैठीं
अंततः मारी गई

 


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