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कविता

काग भगोड़ा

जसबीर चावला


1.

काग भगोड़े
खो चुके साख
प्रासंगिकता
बस प्रतीक भर
न डरते पंछी उनसे
चुग लेते खेत
उनके सिर हाँथों पर बैठते
जब चाहें
मँडराते ठोंगे मारते
वे ताकते टुकुर टुकुर
खो दी अपनी जमीन
अपना खेत


2.

निशस्त्रीकरण का मुद्दा
धुआँधार चर्चा
आणविक शक्ति
बहस पर बहस
महिला मुक्ति / कन्या भ्रूण
दलित / जाति / गहन चिंतन
समाजिक मुद्दों पर भाषण
माओ मार्क्स मंडेला की तस्बीह फेरते
मंच / महफिल में तान मुट्ठियाँ
परास्त करते चिंतक
समाज सेवी / बुद्धिजीवी
छुपा है उनके अंदर
सजग शातिर काग
तुरंत भाँप लेता सीमा
कब पलायन / उड़ान
तन का मन से विद्रोह
भाग लेते
बाँस कपड़े का बेजान बिजूका भर नहीं वे
सच्चे काग
सच्चे भगोड़ा

 


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