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कविता

विक्रम बेताल की आखरी कहानी

जसबीर चावला


विक्रम ने फिर हठ न छोड़ा
इसके पूर्व बेताल से सुन चुका था
पचीस कहानियाँ
अलग अलग
कहानी सुना बेताल कहता
सिर टुकड़े हो जायेगा उसका
प्रश्न का ठीक उत्तर न दिया उसने
बेताल उड़ता हर बार
पेड़ पर लटक जाता
*
विक्रम बोला
बारी खत्म हुई तुम्हारी
सुना चुके पचीस कहानियाँ
घिसी पिटी
इस राजा / साहूकार की
रूपवती सुंदरियों की
बहुत बोर किया
सुनता रहा
अब मेरी बारी
ठीक उत्तर मिला
दिला दूँगा शव से मुक्ति
जिंदा हो मनुष्य बन जाओगे
आर्यावर्त में रह पाओगे
*
सुन शव रोने लगा
किसी प्रश्न का उत्तर दूँगा नहीं तुम्हारे
जिंदा शव बनने से अच्छा है
बेताल शव ही रहूँ
मुझे नहीं जीना
*
कहा बेताल ने
उड़ा
पेड़ पर लटक गया फिर से
अब विक्रम ने भी
हठ छोड़ दिया

 


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