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					सुबह से देख रहा हूँ उसेबिना किसी हड़बड़ी के
 जुट गई है रोजमर्रा के कामों में
 मैं तो तभी समझ गया था
 जब सुबह चाय देते समय
 जल्दी-जल्दी कंधा हिलाने की जगह
 उसने
 बड़े प्यार से कंबल हटाया था
 बच्चों को भी सुनने को मिला
 एक प्यारा गीत
 नाश्ता भी था
 सबकी पसंद का
 नौ बजते-बजते नहीं सुनाई दी
 उसकी स्कूटी की आवाज
 
 देख रहा हूँ
 उसने ढूँढ़ निकाले हैं
 घर भर के गंदे कपड़े धोने को
 बिस्तरे सुखाने डाले हैं छत पर
 दालों, मसालों को धूप दिखाने बाहर रखा है
 
 जानता हूँ
 आज शाम
 घर लौटने पर
 घर दिखेगा ज्यादा साफ, सजा-सँवरा
 बिस्तर नर्म-गर्म धुली चादर के साथ
 बच्चे नहाए हुए
 परदे बदले हुए
 चाय के साथ मिलेगा कुछ खास खाने को
 बस नहीं बदली होगी तो
 उसके मुस्कुराते चेहरे पर
 छिपी थकान
 जिसने उसे अपना स्थायी साथी बना लिया है
 
 जानता हूँ
 सोने से पहले
 बेहद धीमी आवाज में कहेगी वह
 अपनी पीठ पर
 मूव लगाने को
 आज वह छुट्टी पर जो थी।
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