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कविता

आओ हमारे साथ

रेखा चमोली


हम पहाड़ की महिलाएँ हैं
पहाड़ की ही तरह मजबूत और नाजुक
हम नदियाँ हैं
नसें हैं हम इस धरती की
हम हरियाली हैं
जंगल हैं
चरागाह हैं हम
हम ध्वनियाँ हैं
हमने थामा है पहाड़ को अपनी हथेलियों पर
अपनी पीठ पर ढोया है इसे पीढ़ी दर पीढ़ी
इसके सीने को चीरकर निकाली है ठंडी मीठी धाराएँ
हमारे कदमों की थाप पहचानता है ये
तभी तो रास्ता देता है अपने सीने पर
हमने चेहरे की रौनक
बिछाई है इसके खेतों में
हमी से बचे हैं लोकगीत
पढ़ी लिखी नहीं हैं तो क्या
संस्कृति की वाहक हैं हम
ओ कवि मत लिखो हम पर
कोई प्रेम कविता
खुदेड़ गीत
मैतियों को याद करती चिट्ठियाँ
ये सब सुलगती हुई लकड़ियों की तरह
धीमे-धीमे जलाती हैं
हमारे हाथों में थमाओ कलमें
पकड़ाओ मशालें
आओ हमारे साथ
हम बनेंगे क्रांति की वाहक
हमारी ओर दया से नहीं
बराबरी और सम्मान से देखो।

 


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