बहुत से लोग जो मेरे कंधों पर पाँव रख आगे बढ़ गए मिल जाते हैं कभी कभार कुछ दूर से ही काट लेते हैं रास्ता कुछ नजदीक से गुजरते हैं मुस्कुराते हुए मैं फिर बनती जाती हूँ सीढ़ी।
हिंदी समय में रेखा चमोली की रचनाएँ