छोटी-बड़ी अपने-परायों से जाने-अनजाने जान-बूझ कर मिलीं कई चोटें पर कभी एक उफ भी ना निकली घाव जो आत्मा तक को छलनी कर पाए प्रेम के दिए हुए हैं।
हिंदी समय में रेखा चमोली की रचनाएँ