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कविता

बेवजह

रेखा चमोली


मारी जाती हैं
छिपकलियाँ
जब-जब आ जाती हैं नजर
घरों की दीवारों पर
घूमने लगती हैं निडर
उजाले में भी
पर तब तक कोई नहीं
छोड़ता उन्हें
जब तक रहती हैं वे
छिपी
कोनों-सिल्लियों के नीचे
आलमारियों के पीछे
करती हैं कम घर के कीड़े-मकोड़े
खा जाती हैं
मक्खियाँ, मच्छर, काकरोच।

 


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हिंदी समय में रेखा चमोली की रचनाएँ