hindisamay head


अ+ अ-

कविता

जिओ काल में

आंद्रेइ वोज्नेसेन्‍स्‍की


(जि. कोजिरेव के लिए)

दिक् में नहीं बल्कि जिओ काल में।
तुम्‍हें सौंपे गये हैं क्षण-वृक्ष
वन-संपदा के नहीं, मालिक वनो क्षणों के
गुजार दो यह जिंदगी क्षण-गृहों में!

कीमती फर के बदले
पहनाओ अमूल्‍य क्षण!

एकदम बेडौल है काल :
अंतिम घड़ियाँ जितनी छोटी
उतने ही लंबे विछोह के पल।

तौल के बट्टे खेलते हैं आँखमिचौनी।
तुम शतुरमुर्ग तो हो नहीं
कि छिप सको मिट्टी में।

मरते हैं दिक् में
जिया जाता है काल में।

 


End Text   End Text    End Text