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कविता

क ख ग उर्फ सरकार का बदलना?

प्रमोद कुमार तिवारी


क ने जोरदार ठहाका लगाते हुए कहा -
चोरी-चोरी सिनेमा तो देख लिए थे
पर वो सिनेमाहॉल का कीपर
क्या जोरदार तमाचा जड़ा था उसने
तीन दिनों तक बाएँ कान में चींटी सी चलती रही थी
ग ने हामी भरते हुए कहा
फिर भी क्या सीन था दोस्त!
ख आसमान देखने लगा
ग ने सवाल दागा -
अरे यार! ये तो बता
जिस चाँद को आईने में कैद कर
रेत में दबा आए थे हम
क्या हुआ उस बिचारे का।
ये सब छोड़, ये बता!
कैसी लगती है तेरी वो सपने वाली?
लजाते हुए ग ने कहा,
जमीन पर टटका-टटका गिरे महुए जैसी
ख जमीन खुरचने लगा
उत्साह के साथ बोला ग
मालूम है कल क्या हुआ,
सूरज को जमालगोटा दे कर
महीनों बाद तान के सो रहा था
पर सुबह हो गई
आफिस पहुँचा तो बॉस पूँछ कुचले कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था
स्साला! जमालगोटा तक अब असली नहीं बनाते
अरे यार ग तुझे एक राज की बात बताना तो भूल ही गया था
कुछ पता है, पिछवाड़े वाले अमोले में एक और पत्ता आ गया है
चहकते हुए ग ने कहा, और तू जानता है
चुन्नू ने अपने भारी बस्ते की एक और किताब को
नाव बना-बना के बहा दिया
अच्छा! कहाँ तक पहुँची गई होगी उसकी नाव?
झल्लाता हुआ बोला ख -
क्या बकवास कर रहे हो तुम दोनों
कुछ पता है, कल देश की सरकार बदल सकती है
ग ने क की ओर देखा
दोनो ने लगाया कहकहा
और दुहरा हो हो के हँसते रहे
देर तक।

 


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