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					( अचानक ही मर जाऊँगा एक दिन 
					उस ज्योतिषी के कथनानुसार) 
					 
					जिस दिन मुझे मरना होगा 
					नींद कुछ देर से खुलेगी 
					सिर कुछ भारी मिलेगा 
					जैसे जिंदगी का हैंगओवर हो 
					आलमारी खोलूँगा पसंद के कपड़े निकालने के लिए 
					और पाऊँगा... 
					कुछ भी पसंद नहीं आ रहा आज 
					बार-बार आसमान की ओर देखूँगा 
					'आज मौसम अजीब सा है' की धीमी रट के साथ 
					नाश्ता आधा करके छोड़ दूँगा 
					तुम सोचोगी अच्छा नहीं बना आज 
					मैं सोचूँगा आज कुछ अच्छा क्यों नहीं लग रहा कुछ 
					फोन लगाऊँगा किसी पुराने दोस्त को 
					किसी पुरानी गलती को मानने के लिए 
					काट दूँगा मगर घंटी जाने के बाद 
					बार-बार किसी का पत्र आने की बात पूछूँगा 
					 
					जिस दिन मुझे मरना होगा 
					बार-बार तुमसे कहूँगा 
					लाल वाली नई साड़ी पहन कर दिखाने को 
					तुम हर बार मना कर दोगी 
					पहनी हुई साड़ी को 'अच्छी तो है' कहकर 
					कुछ पुराने रिश्तेदारों के यहाँ चलने का प्रस्ताव रखूँगा 
					तुम आश्चर्य व्यक्त करोगी पर नकार दोगी 
					 
					जिस दिन मुझे मरना होगा 
					ढेर सारी पत्रिकाएँ निकालूँगा 
					देखूँगा और चिंता करूँगा 
					कितना कुछ छूट गया पढ़ने से 
					कुछ अधूरी रचनाएँ एक नजर देखूँगा 
					क्या कुछ छूट गया लिखने से 
					तुम्हारे यह कहने पर 
					'कल कर लेना, संडे है' हँसूँगा 
					कल का क्या भरोसा 
					अचानक दार्शनिकों सी बातें करने लगूँगा 
					औचक उठकर देखने लगूँगा पुराने अल्बम 
					नजर ठहर जाएगी किसी हजार बार देखे चित्र पर 
					जैसे पहली बार देख रहा होऊँ 
					अपने नाम का उच्चारण करने पर 
					एक अजनबीपन पाऊँगा... हर बार 
					 
					जिस दिन मुझे मरना होगा 
					बचपन भी बहुत याद आएगा 
					माँ की लाड़ 
					पिता की मार 
					छुटपन की शैतानियाँ और पहला प्यार 
					नदेसर का मकान और मोछू की दुकान 
					दोस्तों से लिए उधार 
					जो कभी चुकाए नहीं गए 
					कुछ बचपने भरे वादे 
					जो कभी निभाए नहीं गए 
					कुछ सपने जो पूरे नहीं हुए 
					 
					तुम ऊलजुलूल बातों से खीझ प्रगट करोगी 
					बोर होकर फ्रिज खोलोगी 
					दूध छलक जाएगा तुम्हारे हाथों से 
					अपशगुन है 
					अचानक 
					एक चमत्कार होगा 
					मुझे 
					लगेगा जैसे मैं एक नींद में हूँ 
					बहुत 
					लंबे 
					समय 
					से 
					सारे अनुभव वास्तविकता नहीं स्वप्न हैं 
					मगर मैं स्वयं को चिकोटी नहीं काटूँगा 
					यदि स्वप्न न टूटा तो ? 
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